नई दिल्ली। बैंकों, बीमा कंपनियां या दूसरे वित्तीय सेक्टर में लावारिस पड़े जमा राशियों या निवेशित राशियों को लौटने का एक बड़ा अभियान देश में शुरू किया जाएगा। पहले चरण में वैसी अनक्लेम्ड राशि लौटाने की व्यवस्था की जाएगी, जिसके मूल निवेशकों या खाताधारकों ने अपने वारिसों की जानकारी संबंधित बैंक, कंपनी या वित्तीय संस्थान को दे रखी है लेकिन उनकी तरफ से लंबा समय गुजर जाने के बाद भी उक्त राशि पर दावा नहीं किया गया है।

बैंकों या वित्तीय संस्थानों की होगी जिम्मेदारी

अब इन बैंकों या वित्तीय संस्थानों की जिम्मेदारी होगी कि वह इन लोगों का एक डाटा बेस तैयार करके उन्हें राशि लौटाने का काम करें। यह फैसला सोमवार को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता में वित्तीय स्थिरता व विकास परिषद (एफएसडीसी) की हुई बैठक में लिया गया। एफएसडीसी में वित्त मंत्रालय के विरिष्ठ अधिकारियों के अलावा आरबीआइ गवर्नर डॉ. शक्तिकांत दास, नियामक एजेंसी सेबी, पीएफआरडीए, आइआरडीए के अध्यक्ष भी शामिल थे।

बैठक में भारतीय वित्तीय सेक्टर पर पड़ने वाले असर को लेकर हुई विस्तार से चर्चा

आज की बैठक में अमेरिका व यूरोप के कुछ बैंकों में आई समस्या और इसके भारतीय वित्तीय सेक्टर पर पड़ने वाले असर को लेकर भी विस्तार से चर्चा हुई है। वित्त सचिव अजय सेठ ने बैठक के बाद बताया कि, एक फैसला यह हुआ है कि वित्तीय क्षेत्र में ग्राहकों की पहचान को सत्यापित करने संबंधी केवाइसी नियमों को आसान व डिजिटल क्षेत्र में हो रहे बदलाव के मुताबिक सरलीकृत किया जाएगा। इस बारे में पहले ही आरबीआइ के डिप्टी गवर्नर की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय समिति है जिसकी सिफारिशें आ गई हैं। इस समिति में दूसरी सभी नियामक एजेंसियों के प्रतिनिधि व वित्त मंत्रालय के भी अधिकारी शामिल हैं।

आरबीआइ को हस्तांतरित की गई है 35 हजार करोड़ रुपये की राशि

मालूम हो कि पिछले महीने वित्त मंत्रालय की तरफ से संसद में बताया गया था कि वाणिज्यिक बैंकों में बिना वारिस वाले 10.24 करोड़ खातों में जमा 35 हजार करोड़ रुपये की राशि आरबीआइ को हस्तांतरित की है। जब किसी खाते में 10 वर्षों तक कोई लेन-देन नहीं होता और ना ही उस पर कोई दावा किया जाता है तो बैंक उस राशि को आरबीआइ को ट्रांसफर कर देते हैं।

सेठ ने बताया कि परिषद की बैठक में वैश्विक वित्तीय स्थिति की चुनौतियों और भारतीय इकोनोमी पर इसके संभावित असर की भी समीक्षा की गई। वैश्विक वित्तीय व्यवस्था को लेकर चिंताएं हैं लेकिन यह आम तौर पर भारतीय वित्तीय व्यवस्था पूरी तरह से सुरक्षित व मजबूत है। हालांकि, हमें सतर्क रहने की जरूरत है।